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शिक्षा का अधिकार कानून प्रभावी ढंग से
लागू करने के लिए 21 सूत्रीय दिशा-निर्देश
1- 6 वर्ष की आयु से लेकर 14 वर्ष की आयु तक हर बच्चे को निकटत्तम पड़ोस* के स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। यह अधिकार स्कूल में प्रवेश पाने के बाद आठवीं कक्षा पूर्ण होने तक हासिल है, भले ही आयु 14 वर्ष से ज्यादा हो जाय। आठवीं कक्षा तक शिक्षा हासिल करने में बच्चे को ऐसी कोर्इ फीस देने की जरूरत नही, जिसकी वजह से उसकी शिक्षा अधूरी रहने का खतरा हो।
2- अगर 6 वर्ष से ज्यादा आयु होने पर भी बच्चे का स्कूल में प्रवेश नही हुआ है तो उसकी आयु के अनुसार कक्षा में प्रवेश दिया जायेगा। अगर बच्चे को उसकी आयु के अनुसार बडी कक्षा में प्रवेश दिया जाता है तो उसे अधिकार है कि वह अपने समकक्ष बच्चों के अनुरूप शिक्षा हासिल करने के लिए विशेश प्रशिक्षण पाये। ऐसे बच्चे को 14 वर्ष की आयु के बाद भी आठवीं कक्षा की शिक्षा पूरी होने तक शिक्षा का अधिकार है।
3- जिस स्कूल में आठवीं कक्षा तक शिक्षा का प्राविधान नही है, यानि स्कूल पांचवीं कक्षा तक है, तो वहां बच्चे को अन्य स्कूल में दाखिला हासिल करने के लिए टी0सी0 लेने और अन्य स्कूल में प्रवेश पाने का पूरा अधिकार है। जिस स्कूल में प्रवेश पाया जाना है उस स्कूल में किसी भी आधार पर विलम्ब नही किया जायेगा। टी0सी0 देते समय एडवांस स्कूल फीस नही ली जायेगी। टी0सी0 देने में विलम्ब करने वाले स्कूल हैड मास्टर या इंचार्ज पर सेवा शर्तो के अधीन अनुशासनात्मक कार्रवार्इ होगी।
प्रशासन के लिए-
4- स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह ऊपर लिखे दिशा-निर्देशो का अपने क्षेत्र में पालन करवाये। जिला शिक्षा अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वह स्कूलो के काम-काज पर निगरानी रखे और स्कूलों का वार्शिक कलेण्डर तय करें। अध्यापकों को कानून के मुताबिक स्कूल में व्यवहार करने का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए।
स्कूलो-अध्यापकों की जिम्मेदारी-
5- सभी सरकारी स्कूलों में मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा दी जायेगी।
6- सरकार से अनुदान पाने वाले स्कूलों** में न्यूनत्तम 25 प्रतिशत छात्रों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देनी होगी।
7- किसी तरह का सरकारी अनुदान न पाने वाले अल्पसंख्यक कैटेगिरी के स्कूलों को सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा कानून के अन्तर्गत 25 प्रतिशत कोटे से छूट दे दी है। 13 अप्रैल, 2012 से उन पर यह नियम लागू नहीं होगा।
8- जिन स्कूलों में प्रथम श्रेणी से पहले प्री-स्कूल शिक्षा का प्राविधान है वहां मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्राविधान प्री-स्कूल शिक्षा से लागू होगा।
9- सरकार से अनुदान न पाने वाले स्कूलों में मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के तहत प्रवेश पाने वाले कमजोर और वंचित वर्गो*** के 25 प्रतिशत बच्चों को प्रवेश देना होगा और उन्हें आठवीं कक्षा तक मुफ्त शिक्षा देनी होगी। जिसकी फीस, पाठय पुस्तकें, गणवेश एवं मध्या भोजन की भरपार्इ सरकार करेगी, जो कि प्रति बालक सरकारी स्कूल में खर्चे या वास्तविक खर्च में से जो कम होगा, उसके आधार पर तय की जायेगी। दो अप्रैल 2012 को सरकारी आदेश से फीस 1383 रूपये प्रतिमाह और गणवेश पर 400 रूपये प्रतिवर्ष के अतिरिक्त पांचवी कक्षा तक 150 रूपये और उससे ऊपर 250 रूपये पुस्तकें प्रतिवर्ष व मिडे डे मिल पर अधिकत्तम 1165-1547 तक किए गए है।
10- स्कूलों में किसी तरह की कैपीटेशन फीस या बच्चों या उनके माता-पिता या उनके अभिभावकों का किसी तरह का स्क्रिनिंग टेस्ट नही होगा। अगर कोर्इ स्कूल कैपीटेशन फीस लेता है तो उसे ली गयी कैपीटेशन फीस से 10 गुना तक जुर्माना किया जा सकता है।
11- अगर कोर्इ स्कूल किसी तरह के स्क्रिनिंग टेस्ट की पद्वति अपनाता है तो उस पर पहली बार 25 हजार रू0 और दूसरी बार 50 हजार रू0 जुर्माना ठोका जा सकता है। इसके बाद भी शिकायत आती है तो हर बार 50 हजार रू0 तक जुर्माना किया जा सकता है।
12- प्रवेश के लिए जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीकरण कानून 1886 या अन्य किसी मान्य दस्तावेज का आधार मान्य होगा लेकिन आयु का प्रमाण-पत्र नहीं होने के आधार पर स्कूल में प्रवेश नही रोका जा सकता।
13- स्कूल में प्रवेश हासिल करने के बाद किसी भी बच्चे को उसकी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी होने तक न तो फेल किया जायेगा और न ही स्कूल से निकाला जायेगा (कानून की धारा 16)।
14- स्कूल में किसी तरह की शारीरिक या मानसिक सजा नहीं दी जा सकती। आर0टी0र्इ0 कानून की इस धारा 17 का उल्लघंन करने वाले अध्यापक पर अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवार्इ होगी। स्कूल प्रशासन िप्रंसिपल या अध्यापक पर कार्रवार्इ नही करेंगे तो प्रशासन प्रबंधन पर कार्रवार्इ करेगा, विद्यालय की मान्यता भी रद्द हो सकती है।
शिक्षा विभाग के लिए-
15- आर0टी0र्इ0 एक्ट लागू होने के 3 साल बाद (यानि सितम्बर 2012 से) सभी निजी और ट्रस्टों इत्यादि के स्कूलों को इस कानून का पालन करने संबंधी नियम, कायदे अपनाने होंगे और मान्यता का प्रमाण-पत्र लेना होगा। अगर स्कूल आर0टी0र्इ0 एक्ट के प्राविधानो को नही मानते तो उन्हें मान्यता नही दी जा सकती और सरकार मान्यता वापस ले लेगी। कानून की धारा 18 (3) के तहत मान्यता वापस लिये जाने के बाद स्कूल काम नही कर सकता। इसके बाद भी यदि स्कूल चलता है तो स्कूल चलाने वाले पर 1 लाख रू0 जुर्माना और उसके बाद प्रतिदिन के हिसाब से 10 हजार रू0 जुर्माना वसूल किया जायेगा।
16- गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को छोडकर हर स्कूल को स्कूल प्रबंध समिति का गठन करना होगा जिसमें स्थानीय प्रशासन के चुने हुए प्रतिनिधि, बच्चों के अभिभावक शामिल होंगे। समिति में तीन-चौथार्इ सदस्य अभिभावक होंगे। कमजोर और पिछड़े वर्ग के अभिभावकों को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जायेगा। समिति में 50 फीसदी महिलाएं होंगी। समिति स्कूल की कार्य पद्वति को मॉनिटर करेगी, स्कूल का विकास कार्यक्रम तय करेगी। सरकार से मिलने वाले अनुदान के खर्चे की निगरानी करेगी। प्रत्येक स्कूल में शिकायत पेटिका लगार्इ जाए, जिसे प्रबंध समिति की बैठक के समक्ष खोला जाय।
17- गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में अध्यापक-अभिभावक संघ बनाए जाएं जिनमें दो-तिहार्इ सदस्य अभिभावक हों। बैठक हर माह हो। प्रत्येक स्कूल में शिकायत पेटिका होनी चाहिए। जिसे अध्यापक-अभिभावक संघ की मासिक बैठकों के समक्ष खोला जाय।
राज्य सरकार के लिए-
18- स्कूल अध्यापकों का जनगणना, आपदा राहत कार्यो और निर्वाचन संबंधी कार्यो को छोड़कर सरकार किसी अन्य डयूटी पर इस्तेमाल नही करेगी।
19- शिक्षकों की ओर से प्रार्इवेट टयूशन पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू होगा।
20- प्रत्येक विद्यालय भवन में पर्याप्त कक्षा-कक्ष, शौचालय, मध्याहन भोजन हेतु रसोर्इघर, खेल का मैदान तथा चारदीवारी की अनिवार्यता होगी।
21- प्रत्येक विद्यालय में टी0एल0र्इ0, पुस्तकालय, खेल सामग्री आदि की अनिवार्य उपलब्धता होगी।
(नोट- * निकट के स्कूल का अभिप्राय पांचवीं कक्षा तक घर से 01 किमी0 और आठवीं कक्षा तक 03 किमी0। ** सरकार से किसी भी तरह का अनुदान या जमीन या बििल्डंग बनाने का खर्च या शिक्षा सामग्री या अन्य कोर्इ सुविधा हासिल करने वाले स्कूलों को अनुदान हासिल स्कूल माना जायेगा।
*** वार्शिक 55000 या उस से कम आमदनी को कमजोर वर्ग में रखा गया है। बीपीएल कार्डधारी, अनाथ बच्चे, अनु0, अनु0जनजाति, विकलांग और निशक्त मुफ्त शिक्षा के अधिकारी होंगे।)
सभी शिक्षा संस्थाओं में बच्चो को सजा बंद करने संबंधी
उत्तराखण्ड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के दिशा-निर्देश
1- सभी बच्चों को अभियान चलाकर सूचित किया जाय कि उन्हें स्कूलो में दी जाने वाली सजा के खिलाफ बोलने और अधिकारियों के ध्यान में लाने का अधिकार है। शिकायत करने के लिये बच्चों का आत्म विश्वास बढ़ाया जाना चाहिए। उन्हें बताया जाना चाहिए कि उन्हें सजा को सामान्य गतिविधि के तौर पर स्वीकार नही करना चाहिए।
2- सभी स्कूलो, हॉस्टलों, न्यायिक ग्रहो, शैलटर होम्स और बच्चों के लिये बने अन्य संस्थानो में ऐसा मंच होना चाहिए जहां वे अपनी बात खुलकर कर सकें। इस मामले में संस्थायें गैर सरकारी संगठनो से मदद ले सकती हैं।
3- बच्चो को अपनी शिकायत दर्ज करवाने के लिये हर स्कूल में शिकायत पेटिका होनी चाहिए।
4- हर स्कूल में अध्यापक-अभिभावक संघ का गठन हो, जिसकी हर माह बैठक होनी चाहिए। गांवो में अगर अध्यापक-अभिभावक संघ का गठन न हो तो गांव शिक्षा समिति का गठन किया जा सकता है, जो बच्चों की शिकायत पर ध्यान दें।
5- अध्यापक-अभिभावक संगठनो को चाहिए कि वे बच्चों की शिकायत पर बिना विलम्ब त्वरित कार्रवार्इ करें ताकि ऐसा न हो कि पिटार्इ करने वाले अध्यापको का मनोबल बढ़ता जाय।
6- अभिभावको और बच्चों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे पिटार्इ करने वाले अध्यापक के खिलाफ बोल सकें, उन्हें स्कूल में बच्चे की भागीदारी पर प्रतिकूल प्रभाव का भय नही होना चाहिए।
7- शिक्षा विभाग में तीनो स्तरो पर (ब्लॉक, जिला और राज्य) एक प्रणाली गठित की जानी चाहिए जिसके तहत बच्चों की शिकायतों पर हुर्इ कार्यवाही की समीक्षा और निगरानी हो सके।
बाल श्रम अधिनियम के अंतर्गत बाल अधिकार संरक्षण आयोग, उतराखण्ड के दिशा-निर्देश
श्रम विभाग के लिए निर्देश-
1. बाल श्रम (प्रतिशेध एवं नियमन) 1986 के तहत बाल श्रमिकों का चिन्हिकरण, अवमानना, अभियोजन, मुलजिम ठहराये जाने वालों की संख्या आदि मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना।
2. एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य के मुकदमें 1997, 3SCC699 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर राज्य में मालिको/नियोक्ताओ पर लगाए गए आर्थिक दण्ड पर वस्तुस्थिति रिपोर्ट तैयार करना।
3. एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य के मुकदमें के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर राज्य में मालिको/नियोक्ताओं से कुल कितनी धन राशि आर्थिक दण्ड के रूप में वसूली गयी।
4. एक ऐसी चार्इल्ड लाइन बनाना जहां पर बाल श्रम से संबंधित शिकायतों को आम जनता दर्ज करा सके तथा उस पर स्थानीय पुलिस की मदद से तत्काल प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित हो सके।
5. बाल श्रम (प्रतिशेध एवं नियमन) 1986 की धारा 3 एवं 14 में दिये गए निर्देशों को संक्षेप में सभी रेलवे स्टेशनों, आवागमन के सार्वजनिक स्थानों एवं उन सभी संदिग्ध जगहों पर जहां से बाल व्यापार के लिए आवागमन होता है पर, स्थानीय एवं अंग्रेजी भाशा में लिखें जाएं।
6. राश्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की तर्ज पर, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी मंजूरी दी है, बाल श्रम के पूर्ण खात्मे के लिए एक समग्र कार्ययोजना तैयार किया जाए जो कि समयबद्ध हो और उसमें निम्नलिखित बातें सुनिश्चित की जाए-
यदि कोर्इ भी मुक्त बाल मजदूर जो बंधुआ मजदूरी का शिकार हो अथवा भारतीय दण्ड संहिता 1860 या किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 अथवा या अन्य कोर्इ धारा जो लागू होती हो तो इन मामलों में पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की जिम्मेदारी श्रम विभाग की होगी।
बाल श्रम कानून (प्रतिशेध एवं नियमन) 1986 में यह स्पश्ट तौर पर कहा गया है कि यदि 14 वर्ष तक का कोर्इ बच्चा Scheduled व्यवसाय एवं प्रक्रिया में कार्यरत है तो उसे मुक्त कराया जा सकता है लेकिन उसकी उम्र 14 वर्ष से अधिक है तो इस कानून के तहत बच्चे को मुक्त नही कराया जा सकता है।
हालांकि किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000, 14 से 18 वर्ष के उम्र के बच्चों पर लागू होगा तथा यह उन बच्चों पर भी लागू होगा जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम हो तथा वे Non Scheduled अनुसूचि व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में कार्यरत है। इसी के साथ-साथ ये बच्चे किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 एवं बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम 1976 (यदि लागू होता हो) के तहत भी निर्दिश्ट होंगे और दिल्ली एक्शन प्लान की तरह जो कि राश्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा बनाया गया है बाल श्रम कानून 1986 भी लगाया जा सकता है।
आगे स्पश्ट किया जाता है कि 20 हजार रूपये जुर्माने की वसूली जो कि एम.सी. मेहता मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित की गर्इ है की वसुली के लिए नियोक्ता के खिलाफ अभियोजन का इंतजार नही किया जाएगा। आगे यह भी कहा गया है कि यह राशि, राजस्व में बकाए के रूप में मुक्त बाल मजदूर द्वारा प्राप्त किया जाएगा और उसका उपयोग वह 14 वर्ष की आयु पूरा करने के बाद पुनर्वास के लिए करेगा।
समाज कल्याण/महिला एवं बाल कल्याण विभागों को बाल श्रम कानून को
लागू करवाने के बावत निर्देश
1. किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 62(अ) के अनुसार प्रत्येक जिले में बाल संरक्षण र्इकार्इ के अन्र्तगत बाल संरक्षण समिति के गठन को सुनिश्चित किया जाए।
2. किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 34 के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार जिला स्तर पर अथवा कम से कम मण्डलीय स्तर पर बाल गृह बनाने की आवश्यकता है।
3. किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 37 के तहत प्रत्येक राज्य सरकार जिले स्तर पर अथवा कम से कम मण्डलीय स्तर पर आश्रय-घर की आवश्यकता है।
4. निम्नलिखित प्रक्रियाओं के तहत बच्चे के पुनर्वास एवं सामाजिक रूप से आत्मसात कराने हेतु स्पश्ट कार्ययोजना एवं दिशा-निर्देश बनाएं जाएं -
5. सभी बच्चों की देख-भाल एवं उनके संरक्षण विशेश तौर पर बाल श्रमिकों के लिए जिला स्तर पर गठित टास्कफोर्स के साथ ताल-मेल रखने के साथ-साथ पुलिस विभाग, श्रम विभाग के अलावा उन सभी एजेन्सियों से जो कि बच्चों की संरक्षण के लिए जवाबदेह है के साथ बाल संरक्षण र्इकार्इ की मदद से समन्वय स्थापित किया जाए।
6. बच्चे के संरक्षण और देख-भाल के लिए सौंपे जाने के बाद इस बात का विशेश ध्यान दिया जाए कि बच्चों को रहने, खाने, कपड़े, सुरक्षा आदि का पर्याप्त इंतजाम या नही।
7. बाल श्रम के खिलाफ आम जनता में जन जागरूकता फैलाया जाए तथा स्थानीय बाल श्रमिकों का पुनर्वास उप श्रमायुक्त और अन्य स्वयंसेवी संगठनों की मदद से की जाए।
8. यदि बाल श्रमिक स्थानीय है तो उसे (लड़का/लड़की) रोजगार आधारित तकनीकि शिक्षा उपलब्ध करायी जाए।
9. बाल गृह के संरक्षक को चाहिए कि वह बच्चे को अपने यहां रखते समय संबंधित बाल कल्याण समिति से अनुमति ले ले।
उत्त्ाराखण्ड पुलिस की जिम्मेदारी
1. किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 23 व 26, भारतीय दण्ड संहिता की अन्य धाराएं जो कि वहां लागू हो रही है, बंधुआ मजदूरी उन्मूलन कानून 1976 समेत अन्य उन सभी उपयुक्त धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करना जो कि बाल श्रम को रोकने में सहायक हो।
2. बचपन बचाओ आन्दोलन बनाम भारत सरकार के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों व किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 63 के प्रावधानों के तहत राज्य के प्रत्येक जिले में ‘विशेश जुवेनार्इल पुलिस र्इकार्इ‘ का गठन किया जाए।
3. पुलिस विभाग द्वारा ‘विशेश जुवेनार्इल पुलिस र्इकार्इ‘ के वरिश्ठ अधिकारियों के लिए समग्र प्रशिक्षण का कार्यक्रम तैयार किया जाए तथा एन्टी ट्रैफिक यूनिट की जिम्मेदारी होगी व अन्य संबंधित विभागों के साथ उचित सहयोग एवं समन्वय स्थापित करे।
4. मालिक/नियोक्ता के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता के द्वारा 363,365,367,368,370,371,374 और 34 तथा इसके साथ-साथ किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 23,24,26 के प्रावधानों व बंधुआ मजदूरी उन्मूलन कानून 1976 समेत जो भी अन्य कानून लागू होता हो, के तहत प्राथमिकी दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर सभी आवश्यक कार्यवाही की जाए।
5. मुक्त बाल मजदूर के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाए और आगे की कार्यवाही के लिए बाल कल्याण समिति/बाल गृह को सौंप दिया जाए।
6. धारा 32 के तहत केस को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। यदि बच्चा किसी अन्य राज्य का हो तो बाल कल्याण समिति के माध्यम से उसे उसके माता-पिता को सौंप दिया जाए।
7. भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा मानव व्यापार जैसे अपराधों को रोकने एवं छान-बीन के लिए बनाए गए ‘स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर‘ (SOP) के दिशा-निर्देशों के अनुसार इन मामलों की जांच की जाए।
8. यदि मामला संगठित मानव व्यापार का हो और इसमें बड़े पैमाने पर संगठित रूप से पूरा तंत्र शामिल हो तो इसकी पूरी छान-बीन करना अनिवार्य है तथा इस प्रक्रिया में हर उस व्यक्ति को दायरे में लिया जाए जो इस अपराध में शामिल है।
9. यदि मामला गुमशुदा बच्चों का हो तो, यह मानकर कि इसका संबंध मानव व्यापार से हो सकता है, पुलिस को चाहिए कि वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर तत्काल जांच शुरू कर दे।
10. यदि बच्चों को काम करवाने के मकसद से, किसी और राज्य से उत्त्ाराखण्ड लाया गया हो और वह बच्चा यहां गुमशुदा हो जाए तो शिकायत मिलते ही पुलिस को चाहिए कि वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 365 और किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 26 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर तत्काल जांच शुरू कर दे।
बाल श्रम मुक्ति के लिए शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी
(1) बाल श्रम से मुक्त करवाये गये बच्चे को बिना लिंग और जाति भेदभाव शिक्षा की मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का लाभ दिया जाना चाहिए और उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए मजबूर करना चाहिए।
(2) इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से चलार्इ जा रही योजनाओं को लागू किया जाना चाहिए।
(3) आठवीं तक शिक्षा पूर्ण करने के दौरान ऐंसे बच्चों को मध्याह्न भोजन का लाभ दिया जाना चाहिए।
(4) जिन क्षेत्रों में स्कूल नही जाने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा है या जहां बाल मजदूरी की समस्या है, वहां वैकल्पिक शिक्षा केन्द्र खोले जाने चाहिए।
(5) ऐसी स्थितियां पैदा की जानी चाहिए कि बच्चों का शिक्षा में रूझान
बढ़े।
(6) बाल श्रम से मुक्त करवाये गये बच्चे अगर स्कूल में दाखिले के बाद फिर स्कूल छोड़ देते है तो स्कूल के प्रधानाचार्य और संबंधित शिक्षा अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
(7) बाल मजदूरों के अभिभावकों को शिक्षा का महत्व समझाया जाना
चाहिए।
(8) शिक्षा में कमजोर बच्चों की देखभाल में क्षेत्र के एनजीओ को शामिल
किया जा सकता है।
(9) संबंधित जिला शिक्षा अधिकारी जिलाधिकारी को इस संबंध में मासिक रिपोर्ट भेजेगा जिसकी प्रतिलिपि शिक्षा निदेशक उत्तराखण्ड और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भी भेजी जाय। इसमें स्कूल और कक्षा के अनुसार बाल मजदूरों की हाजरी और उनके छोड़कर जाने का विवरण हो। इसके अतिरिक्त शिक्षा से वंचित बच्चों का ब्यौरा और उन्हें मुख्य धारा में लाने के प्रयासों की जानकारी भी दी जाय। जिलों की इन रिपोर्टो की जिला स्तर की टास्क फोर्स और राज्य स्तर की निगरानी कमेटी में विचार विमर्श हो।
(10) शिक्षा विभाग सुनिश्चित करे कि हार्इस्कूल में अध्यापकों और छात्रों का उचित अनुपात हो, विशय के अनुसार अध्यापक भी मौजूद हों, अध्यापक समय पर स्कूल आयें और ऐंसे बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाते रहें जिन्हें बाल मजदूरी से मुक्त करवाया गया या मौजूदा कानून के अनुसार बाल मजदूरी में संलग्न है।